माधवराव सिंधिया शालीनता, सेवा और विकास के अमर पुरोधा: कुशवाह।

शिवपुरी। भारतीय राजनीति के इतिहास में कुछ नेता ऐसे हुए हैं, जिनके व्यक्तित्व में परंपरा और आधुनिकता, राजसी गरिमा और लोकतांत्रिक सादगी का अद्भुत समन्वय दिखाई देता है। कैलाशवासी माधवराव सिंधिया इन्हीं विरले नेताओं में से थे। राजघराने की समृद्ध विरासत पाकर भी उन्होंने सत्ता को विशेषाधिकार नहीं, बल्कि जिम्मेदारी माना। उन्होंने राजनीति में शालीनता, संवाद और विकास को प्राथमिकता देकर आने वाली पीढ़ियों के लिए आदर्श स्थापित किया। आज उनकी पुण्यतिथि पर हम उन्हें श्रद्धाए सम्मान और कृतज्ञता से स्मरण करते हैं। ये बात पूर्व नपाध्यक्ष मुन्नालाल कुशवाह ने कही। उन्होंने कहा कि राजमहलों से लोकसेवा की राह तक, माधवराव सिंधिया का जन्म 10 मार्च 1945 को ग्वालियर राजपरिवार में हुआ। उनका पालन-पोषण शाही ठाठ-बाट में अवश्य हुआए परंतु उनमें आरंभ से ही जनसेवा की भावना विद्यमान थी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा प्रतिष्ठित दून स्कूल, देहरादून में हुई और बाद में उन्होंने ऑक्सफ ोर्ड विश्वविद्यालय, इंग्लैंड से उच्च शिक्षा प्राप्त की। विदेश में पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने लोकतांत्रिक मूल्यों, आधुनिक विकास दृष्टि और जनता के प्रति जिम्मेदारी के विचारों को आत्मसात किया। भारत लौटने के बाद उन्होंने राजनीति को सेवा का माध्यम बनाया। मात्र 26 वर्ष की उम्र में सन 1971 में वे कांग्रेस के टिकट पर पहली बार लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए। यह उनके सार्वजनिक जीवन की शुरुआत थी। जिसने आगे चलकर उन्हें देश के लोकप्रिय नेताओं की श्रेणी में ला खड़ा किया।
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पुण्यतिथि पर संकल्प और श्रद्धांजलि
माधवराव सिंधिया का जीवन हमें सिखाता है कि राजनीति का मूल उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्त करना नहीं, बल्कि जनता की समस्याओं को हल करना और उनके जीवन को बेहतर बनाना है। आज उनकी पुण्यतिथि पर हम सभी यह संकल्प लें कि शालीनता, सेवा और विकास की राह पर चलना ही माधवराव सिंधिया को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।